17.8.12

गीता- रहस्य


                                                                      जन्माष्टमी का त्योहार था। चारो तरफ त्योहार का उल्लास था। टी वि पर अलग -अलग शहरों में  मनाए  जा रहे कृष्ण जन्मोत्सव का विस्तृत विवरण दिया जा रहा था। मुंबई में जहाँ दही हांड़ी का धूम था  और फ़िल्मी हस्तियाँ  पंडालों में आकर बड चढ़ कर भाग ले रहे थे  और जनता का  मनोरंजन   कर रहे थे , वहीं मथुरा और  वृन्दावन नई नवेली दुल्हन की तरह सज धज  माखन चोर के आने का इंतजार कर रहे थे। ज्यों ही रात के 12 बजे  शंख ध्वनी के साथ अन्य वाद्य यन्त्र भी जय घोष के साथ गिरिधर कृष्ण मुरारी की धरती  पर  अवतरण  की सुचना दी, भक्तगण  ख़ुशी से झूम उठे। श्री कृष्ण के अनगिनित नामो  मे से अपने अपने पसंदीदा नाम से भगवन को याद करने लगे , उन्हें प्रणाम करने लगे। ऐसा लगता था मानो द्वापर युग लौट आया है। मैं भी अन्य भक्त जनों की भांति हाथ जोड़कर टी वी  को प्रणाम किया जिसमे यह दिखाया जा रहा था। मेरे मन में विचार आया;- क्यों न हम भी कुछ करे , सभी लोग भजन - कीर्तन में रात्रि जागरण कर रहे हैं। अत: मैं  श्री मद्भागवत गीता  लेकर बैठ गया। कई जगह इसका प्रवचन सुन चूका हूँ लेकिन दावे के साथ कह नहीं सकता कि  दो चार श्लोकों के अर्थ के सिवा कुछ समझ पाया हूँ। वैसे विद्वानों के मुह से यह कहते सुना है कि "गीता पढ़ तो कोई भी लेता है परन्तु  इसका गूढ़ अर्थ विरले को ही  समझ आता है।" मैं उन विरले में तो नहीं हूँ, पर सुना था कि रत्नाकर 'मरा -मरा जपते जपते "राम -राम "जपने लगा और वह महा कवि वाल्मीकि बन गया। इसी प्रेरणा से लगा शायद मैं गलत    समझते समझते  कभी सही समझ जाऊ!
                      गीता पढ़ते पढ़ते एक जगह मेरी नज़र  टिक गई;- अर्जुन ने पूछा -"हे केशव ! समाधी  में स्थिर , स्थिर बुद्धि वाले पुरुष का क्या लक्षण है?"  श्री कृष्ण बोले :-"हे अर्जुन ! जो पुरुष सर्वत्र स्नेह रहित हुआ ,उन-उन शुभ तथा अशुभ  वस्तुओं को प्राप्त होकर न प्रसन्ना होता है और न द्वेष करता है, वह स्थिर वुद्धि वाला है". 
                        भगवन श्रीकृष्ण द्वारा दिया गया उत्तर पढ़ कर मेरे मन में एक प्रश्न उठा कि - पढ़े-लिखे होशियार अर्जुन को इस साधारण सी बात को समझने में इतनी देर क्यों लगी ? जब कि   हमारे देश के अर्धशिक्षित राजनेताओं को न केवल अच्छी तरह समझ में आया वरन उन्होंने अपने जीवन में पूरी तरह अपनाया है। नेता स्नेह रहित है , उन्हें किसी से प्यार नहीं है। जनता जिए या मरे ,  खाएं या भूखे रहे, उस से वे विचलित नहीं होते। उन्हें कोई गाली दे , उन्हें कोई थप्पड़ मारे या फिर जूता मारे , वे विचलित नहीं होते है। वे स्थिर बुद्धिवाले हैं तभी तो थप्पड़ मारने  या जूते  मारने वाले से कोई द्वेष नहीं करते ,उन्हें माफ़ कर देते हैं। सिर्फ कुर्सी ही उनका प्यारा है और उसके लिए जुते , चप्पल,थप्पड़ कुछ भी खा सकते हैं।
                        आज के नेता सांख्ययोगी हैं। सांख्ययोगी  देखते हुए मानते हैं आँख ने देखा है मैं नहीं , खाते हुए सोचते हैं मुख ने खाया है मैं नहीं , बोलते हुए बोलता है जीभ ने बोला है मैं नहीं । इस प्रकार कोई भी काम का कर्तापन की जिम्मेदारी नहीं लेते । हर घपले में आपाद मस्तक लिप्त होने के वावजूद नेता सबदोष या तो आफिसर के सर डाल देते हैं या भगवान पर। वे जानते हैं कि भगवान ने अर्जुन को बताया था कि "जो पुरुष सब कर्मों को परमात्मा में अर्पण करते हैं ,वह पुरुष "जल में  कमल के  पत्ते " की भांति पाप से लिपायमान नहीं होते , इसलिए वे सब कम भगवान पर छोड़ देते है। जनता को अनाज नहीं तो मंत्री जी कहते है कि भगवन ने वर्षा नहीं किया इसलिए फसल नहीं हुआ तो हम क्या करें।.
                   "  हर नेता कहता है वह पाक-साफ है। परन्तु करीब एक तिहाई नेता पर  कोर्ट में मुकदमा चल रहा है। कोई जानवर का चारा खा गया है, कोई सैनिको का कफ़न चुरा लिया है , किसीने  कोयला से अपना मुहँ  काला कर लिया, तो  किसी के गले में टेलीफ़ोन और विजली के तार का फांसी लटक रहा है।  फिर भी  ये सभी निश्चिन्त ,निर्विकार होकर  कुर्सी से चिपके हुए है। क्या इन से ज्यादा कोई स्थिर बुद्धिवाला हो सकता है ? भगवान के मंदिरों में गुप्त दान देकर अपने को पाप मुक्त कर लिया है , ऐसा  वे मानते हैं। ख़ुद तो रिश्वतखोरहैं  , भगवान को भी रिश्वतखोर बनाना चाहता है .   (सर्व कर्मणि त्वदर्पनम  ) कभी सोने का मुकुट चढ़ाया , तो कभी हीरे-मोती। आम जनता का हैसियत तो नही है ऐसा।
                खैर, अर्जुन को बड़ी देर से ये सब बाते समझ आयी , विराट रूप देखने के  वाद। परन्तु हमारे नेता गीता को बिना पढ़े इसका सबसे महत्त्व पूर्ण गूढ़ अर्थ को समझ गए। कौरबो ने चक्रव्यू बनया था अर्जुन को मारने  के लिए ,परन्तु उस चक्रव्यू में निर्दोष, सीधा-साधा अभिमन्यु मारा गया। आज इस कलि युग में हर एक  नेता दुर्योधन है। दुर्योधन तो केवल पांडवो को परेशान करना चाहते थे, उनका ही धन संपत्ति हड़पना कहते थे , परन्तु यहाँ हर नेता न केवल आम जनता के गाढ़ी कमाई को  लूट रहा है,  वरन मौका मिलते ही उनकी जमीन जायदाद हड़प ले रहे है। जनता लाचार है। अभिमन्यु जैसे  उनको भी नेताओं के शोषण के चक्रव्यू से निकलने का रास्ता मालूम नहीं है।  सरकारी खजाने की बात तो सर्व विदित है।  एक के बाद एक स्क्यम (घपला ). इन घपलों में सी .ए .जी के अनुसार सरकारी  खजाने  को अब तक  तीन  सौ अटहत्तर लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ है। अरे दुर्योधन तो फिर भी  अच्छा था ,  अपने राज खजाने  में डाका नहीं  डालता था , परन्तु नेता अफसरों  को कहते हैं की तुम लोग सरकारी खजाने से छोटी मोटी चोरी  तो कर सकते  हो ,  परन्तु डाका मत डालना , यह अधिकार हमारा  है।
               जन लोकपाल बिल इसी डकैती को रोकने के लिए टीम अन्ना  ने ड्राफ्ट किया था और सरकार के पास भेजा था। उसे पढ़कर दुर्योधनो के हाथ पैर फुल गए और रात की नींद उड़ गई। सभी  सपने में अपने को सलाखे के पीछे देखने लगे। तब सकुनियों एवं दुर्योधनों ने बैठ कर दूसरा ऐसा ड्राफ्ट बनाया जिसमें दुर्योधन शकुनी , सारे कौरव तो बच जाये परन्तु निर्दोष जनता (अभिमन्यु ) मारा जाये। जल्दीबाजी में उसे लोकसभा में पास भी करवा लिया। क्या इन दुर्योधनों के रहते कभी जन लोकपाल बिल आ पायगा ? क्या अभिमन्यु (जनता ) को न्याय मिलेगा ? आप  जरा सोचिए , यदि आपके पास कोई जबाब हो तो हमें  भी बताइए।


कालीपद "प्रसाद "
सर्वाधिकार सुरक्षित


आपका स्वागत है ,आभार.