दामिनी चली गई परन्तु देश के माथे पर और कांग्रेस के माथे पर कलंक लगाकर गई।दामिनी ना पहली है ना आखरी होगी क्योकि जब पूरा देश आक्रोश में उबल रहा है , फिर भी महिलाये बलात्कार के शिकार हो रही है, क्योकि सब जानते है की सरकार कुछ दिन घडियाली आंसू बहाएगी ,कुछ वादे करेगी और फिर भूल जाएगी। संसद में लम्बी लम्बी बहस होगी और फिर प्रस्ताव पास नहीं होगा। सरकार जनतंत्र के नाम से अपना पलड़ा झाड लेगी। बि .जे .पी ने मांग किया है कि तुरंत सत्र बुलाये जाय और शक्त कानून बनाये जाय। सरकार क्यों नहीं बुलाती है? यह एक संवेदनशील विषय है, इस पर कानून पास करना सरकार आवश्यक नहीं समझती? यदि सरकार बहस से डरती है तो अध्यादेश जारी करे।समाचार पत्रों से, न्यूज़ चैनलों से यह बात तो जग जाहिर हुआ है कि सरकार रेपिस्ट को नपुंशक बनाने की बात सोच रही है ,यदि वह दो बार बलात्कार करे। अर्थात बलात्कारियों से सरकार कहना चाहती है कि बेटा एकबार बलात्कार करते हो तो तुम्हे डरने की बात नहीं ,तुम्हे उसके लिए दूसरा मौका भी दिया जायेगा। क्या यह हास्यादपद नहीं है? सब नागरिक चाहते है कि बलात्कारियों को मृत्युदंड मिले।इसलिए सरकार को ड्राफ्ट में परिवर्तन कुछ इस प्रकार करना चाहिए।
1."बलात्कार " "Rarest of rare" केटेगरी में रखा जाय। कोर्ट केवल इसी वर्ग को मौत की सजा दे सकती है अन्य को नहीं।
2. किसी वजह से यदि उसे आजीवन कारावास की सजा मिलती है , आजीवन का अर्थ 35 वर्ष होना चाहिए। नपुंसक बनाकर जेल में ही रखना चाहिए, बाहर रहेगा तो प्रतिशोध में वह शारीरिक क्षति पहुंचाएगा।
3.छेड़खानी करने वालों को कम से कम 7/8 साल की सजा होनी चाहिए।
4.ऐसे केस के लिए फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट होना चाहिए जो 2/3 महीने में फैसला सुना दे। इनकी सुनवाई प्रति दिन होनी चाहिए।
5.पोलिश को केस फाइल करने लिए एक सप्ताह का समय मिलना चाहिए ,बिना वजह देर करने वाले पर कार्यवाही होना चाहिए।
6.बलात्कार के दोषी की सजा माफ़ करने की राष्ट्रपति का अधिकार स्थगित होना चाहिए, क्योंकि इसका लाभ केवल दबंग लोगो को मिलता है ,आम आदमी को नहीं।
ये कुछ सुझाव है ,जो सरकार अपने संसोधन बिल में , वर्मा आयोग के सिफारिशों के साथ सामिल करके तुरंत अध्यादेश जारी कर सकती है और जन आक्रोश का सामना कर सकती है। हम ना सरकार के विरोधी है ना हिंसा के पक्षधर । हम यही चाहते है कि महिलायों की सुरक्षा के लिए जितना शक्त से शक्त कानून बनाया जा सकता है ,बनाया जाना चाहिए। माँ ,बहन, बेटी सुरक्षित होगी तो हम भी सुरक्षित महसूस करेंगे।
कालीपद "प्रसाद "
kanoon main badlav jaruri hai
ReplyDeleteblog par aakar honsla afjai ke liye shukriya,
ReplyDeletenav barsh mangalmay ho apke liye
बहुत अच्छे सुझाव है ..इन्हें लागु करने मात्र से बहुत सुधार हो सकता है
ReplyDeleteविचारणीय हैं सारे बिंदु...... कुछ तो उचित करना ही चाहिए सरकार को....
ReplyDeletethnx / sr
ReplyDeleteसही कहा यह जुर्म कठोर से कठोर सजा के ही लायक है।
ReplyDeleteबेहतरीन लेख प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद। कुछ ताे करना ही चाहिए सरकार को।
ReplyDeleteNice sir - Fb Name Stylish
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