29.12.12

निर्भय (दामिनी ) को श्रद्धांजलि

           




                 भारत के लिए आज का दिन शर्मनाक दिन है . भारत सरकार और दिल्ली सरकार की निष्क्रियता से आज भारत की एक बेटी दरिंदो का शिकार होकर इस दुनिया को अलविदा कह दिया।13 दिन वह मौत से लडती रही,परन्तु अंत में वह हार गई।इस घटना से शायद भारत सरकार में बैठे हुए लोगों को शर्म ना आये परन्तु आम आदमी का सर शर्म से झुक गया है।आम आदमी दुखी है,हताश है,उनमे आक्रोश है। कांग्रेस ने तो "भूल जाओ और माफ़ करो" वाली  नीति अपना लिया है। उनके अलग  अलग नेता  अलग भाषा बोलते है। वे क्या सोच समझ कर बोलते है या बोलने के बाद समझते है?  राष्ट्रपति का बेटा अभिजित मुखर्जी ,जो अब सांसद हैं, प्रदर्शन करती महिलायों के लिए अनैतिक ,अवांछित टिप्पणी करता है फिर माफ़ी मांगता है। दिल्ली  के मुख्य मन्त्री जी शोक संवेदना में 'निर्भय' के साथ साथ उसके परिवार को भी श्रद्धांजलि दे दिया। वह क्या कहना चाहती है,स्पष्ट नहीं है। अब समझकर शायद कुछ स्पष्टीकरण दे दें।
              बाल ,वृद्ध ,युवक ,युवती , मालिक मजदुर, नेता ,अभितेता  सभी की ओर से  यह मांग हो रही है कि बलात्कारी को फांसी की सजा होनी  चाहिए। सरकार  उसके लिए शक्त कानून बनाये। कांग्रेस सरकार वायदा  करने में बहुत माहिर है,काम करने में नहीं। अभी तक शांति पूर्ण विरोध प्रदर्शन को दबाने की प्रयत्न
करने के सिवाय कानून बनाने की कोई पहल नहीं की। सरकार  की मंसा शक्त बनाने की नहीं है।सरकार के नुमाइन्दे  हमेशा की तरह इस परिस्थिति से मुक्ति पाने के लिए बहाना ढूंढ़ रहे  है। कभी जाँच आयोग बैठाने की बात करते  है,कभी विपक्ष की आलोचना करते   है,  कभी यह एक छोटी घटना बता कर मीडिया पर बढ़ा चढ़ा कर बताने की दोष मढ़ देते  है। शक्त कानून बनाने की बात करते है, बनाते नहीं। दुःख प्रगट करते है ,फिर सतरंज की चल चलते है। क्या हमारी जनता अभी भी सोती रहेगी और यह प्रपंच को सहेती  रहेगी?
                  अभी समय आ गया है जागने की। युवा वर्ग में अभी जोश है ,होश भी है। वे   इस शांति पूर्ण प्रदर्शन को निर्णायक मोड़ तक ले जा सकते हैं। परन्तु डर  है ,जैसे अन्ना हजारे जी के भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन में सरकार के कुछ मंत्रियों ने फूट डाल  कर उसे कमजोर बना दिया है वैसे ही सरकारी  नुमाइन्दे इस आनोलन के बीच में घुस कर हिंसा फैला सकते हैं। तब सरकार यह कहकर कि  आन्दोलन हिंसा फैला रहा है ,आन्दोलन कारियों पर कोई भी जुल्म कर सकती  है। अत: युवा नेतायों को सतर्क रहना पड़ेगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि आंदोलन में हिंसा न हो और न आन्दोलन कमजोर पड़े। यह तब तक चलना चाहिए जबतक सरकार कानून को संसद के दोनों सदनों से पास न करा ले। सरकार  इस परिस्थिति से  तात्कालिक मुक्ति  पाने के लिए एक जांच आयोग बैठाया है। कानून में किस प्रकार  का बदलाव लाया जाय . इस आयोग का अध्यक्ष हैं माननीय जस्टिस वर्मा। जनता से आग्रह किया गया है कि अपनी राय इस आयोग को भेजे। एक नागरिक होने के नाते हम भी यही चाहेंगे कि अपनी राय भेजे।उनका ईमेल है:-

                                       justice.verma@nic.in

             सभी युवा वर्ग एवं इस लेख को पढने वाले सभी जागरूक पाठकों से भी निवेदन है कि वे भी अपनी राय भेजे। यह आग्रह करे कि :-
1."बलात्कार  "को " rarest of rare" केटेगरी में रखा जाय क्योंकि मृत्युदंड केवल इन्ही को मिलता है।
2 .बलात्कारी  को कमसे कम 20 साल की सजा होनी चाहिए .8/10 साल नहीं।
3. सजा के समाप्त होने तक कोई जमानत नहीं होनी चाहिए।
4. बलात्कारी की सजा माफ़ करने /कम करने की राष्ट्रपति के अधिकार  क्षेत्र से बाहर होना चाहिए क्योंकि इसका उपयोग केवल पहुच वाले राजनीतिज्ञ  ही करते है। आम आदमी नहीं।

                  यह भी लिखें कि जो कानून बनाये  उसका नाम "निर्भय क़ानून "हो, ताकि भारत की बेटियों के दिल में हमेशा वह जिन्दा रहे और भारत की बेटियां निर्भय होकर घूम फिर सके। यही होगी  "निर्भय" को सच्ची श्रद्धांजलि


कालीपद "प्रसाद "

            




5 comments:

  1. आने वाला वर्ष जन जन के लिए मंगलकारी हो..बलात्कार मुक्त हो।

    ReplyDelete
  2. आपकी बातों से सहमत हूँ लेकिन सजा अपराध की अपेक्षा कम है... मृत्यू दंड से कम नहीं

    ReplyDelete
  3. मौत की सजा ही होनी चाहिए...

    ReplyDelete
  4. मौत की सजा ही होनी चाहिए...

    ReplyDelete
  5. दुखद और शर्मनाक..

    ReplyDelete